अमेरिका की ओर से पाकिस्तान को फंड देने पर एस. जयशंकर ने उठाए सवाल, कहा कुछ ऐसा…

अमेरिका की ओर से पाकिस्तान को 450 मिलियन डॉलर की मदद एफ-16 फाइटर जेट्स के रखरखाव के नाम पर दिए जाने की भारत ने तीखी आलोचना की है। भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अमेरिकी फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा है कि इससे अमेरिका के हितों को कोई फायदा नहीं होगा। यही नहीं अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन से मीटिंग से पहले जयशंकर ने कहा कि इस फैसले से कोई बेवकूफ नहीं बनेगा।

भारतीय अमेरिकी समुदाय के लोगों को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री ने कहा कि अमेरिका का कहना है कि पाकिस्तान को यह मदद आतंकवाद से लड़ने के लिए दी गई है। हालांकि हर कोई जानता है कि पाकिस्तान एफ-16 फाइटर जेट्स का इस्तेमाल किसके खिलाफ करता है। आप ऐसी बातें करके किसी को मूर्ख नहीं बना सकते हैं।

जयशंकर ने इस दौरान अमेरिका से हथियारों की डील न करने को लेकर भी बात की। उन्होंने कहा कि 1965 के बाद से लगातार 4 दशकों तक दोनों देशों के बीच रिश्ते कमजोर रहे और एक-दूसरे को संदेह की नजर से देखते थे। लेकिन 1995 के बाद से रिश्तों में सुधार आया। उन्होंने कहा कि इसकी वजह शायद यह भी थी कि उस दौरान की दुनिया ही ऐसी थी। उन्होंने कहा कि भारत और अमेरिका के बीच रिश्ते न्यूक्लियर डील के बाद से बेहतर हुए हैं औऱ एक-दूसरे पर भरोसा बढ़ा है।

उन्होंने अमेरिका को एक और संदेश देते  हुए कहा कि ताली बजाने के लिए दो हाथ जरूरी होते हैं। यदि अमेरिका अपने हितों का ध्यान रखते हुए भारत से रिश्ते रखता है तो फिर उसे भारत की चिंताओं का भी ख्याल रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज के हालात एकदम अलग हैं। हमने अमेरिकी सेना के साथ कई अभ्य़ास किए हैं। अमेरिका में बने सी-17 विमान को हम उड़ा रहे हैं। हमें एक-दूसरे के संस्थानों को समझना होगा तभी रिश्ते बेहतर हो सकते हैं।

पाकिस्तान को 450 मिलियन डॉलर की मदद पर भारत के ऐतराज को लेकर अमेरिका ने हाल ही में सफाई दी थी। अमेरिका का कहना था कि भारत के खिलाफ यह फैसला नहीं लिया गया है। इस मामले को यूक्रेन पर भारत के स्टैंड के खिलाफ नहीं देखा जाना चाहिए। अमेरिका के इस रिएक्शन के जवाब में ही एस. जयशंकर ने दो टूक बात कही है।

इससे पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी अपने समकक्ष से इस मामले को लेकर अमेरिका से आपत्ति जताई थी। एस जयशंकर ने कहा, ‘अमेरिका के पाकिस्तान से रिश्तों से किसी भी देश का भला नहीं होने वाला है। इसलिए अमेरिका को यह सोचना चाहिए कि वह किससे रिश्ते रख रहा है और उससे उसे क्या लाभ होगा। कैसे उसके हितों की पूर्ति हो पाएगी।’

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