अखिलेश-जयंत कर सकते हैं नया प्रयोग, मिशन 2024 और निकाय चुनाव को लेकर…

आगामी लोकसभा चुनाव तक अपना गठबंधन बनाए रखने के लिए समाजवादी पार्टी (सपा) और राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) एक नया प्रयोग करने की तैयारी में हैं। निकाय चुनाव में ज्यादा से ज्यादा कार्यकर्ताओं को चुनाव लड़ने का मौका देने के लिए दोनों दल सर्वमान्य फारमूला तैयार करने में जुटे हैं। इससे गठबंधन की गांठें भी नहीं खुलेंगी और कार्यकर्ताओं के मन की साध भी पूरी हो सकेगी।

पिछले विधानसभा चुनाव में दोनों दल साथ-साथ चुनाव लड़कर उसका फायदा देख चुके हैं। साथ ही आगामी लोकसभा चुनाव भी साथ लड़ने की प्रतिबद्धता जाहिर कर चुके हैं। इसी प्रतिबद्धता के तहत सपा ने रालोद मुखिया जयंत चौधरी को राज्यसभा भेजने में मदद की थी।

लोकसभा से पहले नगर निकाय चुनाव आ जाने के कारण दोनों दल किसी तरह के बिखराव का संदेश नहीं देना चाहते। इसके तहत पश्चिमी यूपी में कुछ नगर निगमों में मेयर और निकायों के चेयरमैन के पद पर रालोद प्रत्याशियों को मौका मिल सकता है। पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता सुरेन्द्र नाथ त्रिवेदी ने कहा कि सभी विकल्पों पर विचार चल रहा है। दोनों दलों के शीर्ष नेता जल्द ही इस पर फैसला लेंगे।

सूत्रों के अनुसार दोनों दलों के बीच इस मुद्दे पर बातचीत चल रही है कि नगर निगमों में मेयर और नगर पालिका परिषदों व नगर पंचायतों में चेयरमैन के पदों पर साझा उम्मीदवार उतारे जाएं, जबकि पार्षद व सदस्य के पदों पर दोनों दलों के प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने की छूट दी जाए।

इससे दोनों दलों का संगठनात्मक ढांचा भी मजबूत होगा और कार्यकर्ताओं में नाराजगी भी नहीं होगी। दलों दलों के झंडे-बैनर वार्ड-वार्ड लगने से पार्टी को फायदा ही होगा। राजनीतिक दल आमतौर पर निकाय चुनावों में गठबंधन से परहेज करते हैं, क्योंकि वे नहीं चाहते कि निचले स्तर पर पार्टी का संगठन कमजोर पड़े।

निकाय चुनाव अक्सर नगरीय क्षेत्रों में पार्टियों के लिए जनाधार बढ़ाने में सहायक होते हैं। महापौर व चेयरमैन का चुनाव भी सीधे मतदान के जरिए होने की व्यवस्था से पार्षदों या सदस्यों की संख्या का कोई खास मतलब नहीं रह जाता है।

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