कॉलेजों में फीस को लेकर उत्तराखंड सरकार का बना यह प्लान, जानिए सबसे पहले…

त्तराखंड में कॉलेजों में अब सख्ती होने वाली है। कॉलेजों में फीस निर्धारण को लेकर उत्तराखंड सरकार सख्त कदम उठाने वाली है। सरकार के इस कदम से छात्रों सहित अभिभावकों को भी राहत मिलने वाली है। कॉलेजों में एडमिशन से लेकर फीस पर सरकार कदम उठाने वाली है।

उत्तराखंड में मेडिकल और इंजीनियरिंग कालेजों की फीस को हर साल तय किया जाएगा। छात्रों को एडमिशन से लेने से पहले पता होगा कि जिस कोर्स में वो एडमिशन लेने जा रहा है, उसके लिए उन्हें कितनी फीस अदा करनी है। सरकार फीस निर्धारण की वर्तमान व्यवस्था में अहम बदलाव करने जा रही है।

उच्च शिक्षा सचिव शैलेश बगोली के अनुसार राज्य स्तर पर बनने वाली प्रवेश एवं शुल्क नियामक कमेटी के अधीन कालेजों से संबंधित विश्वविद्यालयों में भी एक स्क्रीनिंग कमेटियां बनाई जाएंगी। स्क्रीनिंग कमेटी से पारित होकर आने वाले प्रस्तावों पर नियामक कमेटी निर्णय लेगी। नई व्यवस्था के लिए सुझाव भी लिए जा रहे हैं।

राज्यपाल की पहल पर संबद्धता हो चुकी है ऑनलाइन: शैक्षिक संस्थानों की संबद्धता को लेकर अभी तीन अप्रैल को राजभवन ने भी बड़ा कदम उठाते हुए पूरी प्रक्रिया को ऑनलाइन कर दिया है। संबद्धता की प्रक्रिया भी अब तक काफी धीमी रफ्तार से चलती रही है। कई बार दो से तीन साल बाद जाकर कोर्स को संबद्धता मिलती है।

हालिया फरवरी में ही राजभवन ने कई पुराने कोर्स को संबद्धता के आदेश जारी किए थे। राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेनि) गुरमीत सिंह ने इसे गंभीरता से लेते हुए प्रकिया को पारदर्शी और समयबद्ध करने के लिए तीन अप्रैल को ऑनलाइन प्रक्रिया लागू कर दी है।

नया शैक्षिक सत्र शुरू होने से छह से आठ महीना पहले शुल्क ढांचा तय करने की कार्यवाही शुरू हो जाएगी। कोशिश की जाएगी कि दिसंबर तक इसका पूरा खाका तय हो जाए। नया शैक्षिक सत्र शुरू होने से पहले ही हर संस्थान अपने शुल्क ढांचे को वेबसाइट पर सार्वजनिक करेगा। जरूरी नहीं कि हर साल शुल्क बढ़ाया जाएगा।

राज्य में मेडिकल और टैक्नीकल शिक्षा से जुड़े संस्थानों में एडमिशन और फीस तय करने की प्रक्रिया काफी धीमी है। वर्तमान में राज्य में वर्ष 2017-18 में तय किए मानक के अनुसार शुल्क लिया जा रहा है। समय पर फीस तय न होने की वजह से कई संस्थान छात्रों से भविष्य में तय होने वाली फीस के अनुसार भुगतान करने का सहमति पत्र ले लेते हैं। बाद में फीस में बढोत्तरी होने पर छात्रों पर आर्थिक बोझ बढ़ने का डर बना रहता है।

 

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