कतर्निया घड़ियाल कंजर्वेशन व रिसर्च सेंटर के रूप में होगा विकसित, तीन महीने में तैयार होगा…

कतर्नियाघाट वन्यजीव प्रभाग में घड़ियाल कंजर्वेशन व रिसर्च सेंटर बनाने की ओर कदम बढ़े हैं। 10 सदस्यीय शोध और प्रशिक्षुओं का दल कतर्निया पहुंच गया है। यहां तीन महीने रहकर टीम घड़ियाल पर डाक्यूमेंट्री फिल्म तैयार करेगी।

जलीय क्षेत्र में घड़ियाल के कुनबों को बढ़ाने व उनके रहन-सहन पर रिसर्च कर शोध पत्र तैयार किया जाएगा। इसी के आधार पर सरकार पर्यटन स्थल के स्वरूप व घड़ियाल रिसर्च सेंटर तक की योजना को अंतिम रूप देगा।

अब इसी पहचान को राष्ट्रीय व विश्व फलक पर चमकाने की तैयारी हो रही है। इसके तहत घड़ियालों के कुनबों को बढ़ाने के साथ ही घड़ियाल सेंटर के आकार को भी बदलने की योजना बन रही है। इस पर कदम उठाने से पहले 10 सदस्यीय टीम कतर्निया पहुंची है। इसमें टीम में तीन शोधकर्ता, छह प्रशिक्षु शोधकर्ता व एक मूवी मेकर शामिल है। यह टीम तीन माह कतर्निया में रहकर शोध करेगी। शोध रिपोर्ट के आधार पर सेंटर का स्वरूप तैयार किया जाएगा।

कतर्नियाघाट पर फिल्म बनाई जा चुकी, लेकिन विशेषकर घड़ियाल पर पहली बार डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाने की तैयारी हो रही है। फिल्म में कतर्निया के शोध पत्रों को भी शामिल किया जाएगा, ताकि भविष्य में छात्रों को शोधपरक सामग्री आसानी से मिल सके।

गेरुआ में 12 पुल बने हुए हैं। इनमें से तीन पुल में कछुआ का बसेरा है जबकि एक पर मगरमच्छों का कब्जा है। वहीं छह पुलों में घड़ियालों का कुनबा रहता है। जिस तेजी से संख्या बढ़ रही है। ऐसे में पुल कम और आकार में छोटे पड़ रहे हैं। रेंजर का कहना है कि बड़े घड़ियाल चार से पांच फुट के होते हैं। एक पूल में छह से ज्यादा नहीं रह सकते हैं। यह टीम पुल पर रिसर्च कर अपना विचार प्रस्तुत करेगी।

भारत-नेपाल सीमा से कतर्नियाघाट वन्यजीव प्रभाग लगा हुआ है। 551 वर्ग किलोमीटर में फैले प्रभाग में वैसे तो बाघ, तेंदुआ, हाथी, गैंडा समेत कई तरह के दुर्लभ वन्यजीव व पक्षियों का बसेरा है।

यह जानकर हैरान होंगे कि कतर्निया के बीच होकर बहने वाली गेरुआ के छह किलोमीटर का दायरा घड़ियाल के कुनबों का बसेरा रहता है। देश भर में कतर्नियाघाट घड़ियाल कंजर्वेशन के रूप में ही शुरुआत से जाना जाता है।

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