सचिन पायलट और अशोक गहलोत के विवाद को खत्म करना चाहते है मल्लिकार्जुन खड़गे, का सकते ऐसा…

एक तरफ सोनिया गांधी और दूसरी तरफ राहुल गांधी के साथ खड़े मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस अध्यक्ष का प्रमाणपत्र सौंपा गया तो उनके चेहरे पर जिम्मेदारी का भाव साफ दिख रहा था। उनका चेहरा खामोश और आंखों में सवाल थे। साफ है कि उन्हें अपनी जिम्मेदारियों और चुनौतियों का अहसास था।

उनके पास जो अभी पहली चुनौती होगी, वह है राजस्थान में सचिन पायलट और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बीच के विवाद को खत्म करना। गांधी परिवार ने इसको लेकर कई प्रयास किए, लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है। दोनों गुटों की वर्चस्व की लड़ाई को खत्म करने के लिए सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ-साथ प्रियंका गांधी के द्वारा भी पहल की गई थी।

अध्यक्ष के तौर पर पहले भाषण में उन्होंने हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभा चुनाव का जिक्र किया। लेकिन, असल परीक्षा 2023 में कर्नाटक सहित नौ राज्यों में होने वाले चुनाव होंगे। कर्नाटक उनका गृह राज्य है। ऐसे में कर्नाटक चुनाव में हार जीत को अध्यक्ष के तौर पर उनके प्रदर्शन से जोड़कर देखा जाएगा।

पार्टी को एकजुट रखना भी बड़ी चुनौती है। कुछ वर्षों में अन्य विपक्षी पार्टियों के मुकाबले कांग्रेस के विधायक और सांसदों ने सबसे ज्यादा पाला बदला है। ऐसे में कांग्रेस को एकजुट रखते हुए अंदरूनी कलह पर काबू पाना होगा। इसके साथ खड़गे पर वर्ष 2024 के चुनाव के लिए पार्टी को तैयार करने और विपक्षी को एकजुट करने की जिम्मेदारी है।

मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच झगड़े को खत्म करने की भी चुनौती होगी। राजस्थान में अलगे साल विधानसभा चुनाव हैं। इसके साथ पार्टी के अंदर संवाद की प्रक्रिया को बहाल कर पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं का भरोसा जीतना होगा।

कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर जिम्मेदारी संभालते ही खड़गे ने कामकाज शुरू कर दिया है। खड़गे की अध्यक्षता में गुजरात विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार तय करने के लिए केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक हुई। पार्टी मुख्यालय में हुई इस बैठक में पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी भी उपस्थित थी। सीईसी की बैठक में गुजरात की करीब साठ सीट पर संभावित उम्मीदवारों के नाम पर चर्चा हुई। गुजरात विधानसभा चुनाव का ऐलान जल्द होने की उम्मीद है।

खड़गे ने ऐसे वक्त यह पद संभाला है जब पार्टी अपने इतिहास के सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही है। पार्टी की सिर्फ राजस्थान और छत्तीसगढ में सरकार है। लोकसभा में पार्टी के पास 53 और राज्यसभा में सिर्फ 31 सांसद हैं। खड़गे के सामने सबसे पहली चुनौती पार्टी में खुद को स्थापित करना है।

खड़गे ने उदयपुर नवसकंल्प के मुताबिक, संगठन में पचास फीसदी पद पचास साल से कम उम्र के लोगों को सौंपने का संकल्प जताया है पर यह आसान नहीं है। इससे बुजुर्ग नेताओं की नाराजगी बढ़ सकती है। कांग्रेस कार्यसमिति में प्रियंका गांधी को छोड़कर सभी सदस्यों की उम्र पचास वर्ष से ज्यादा है। खड़गे की उम्र खुद 80 साल हैं।

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