बिहार में आसान नहीं नीतीश की राह, बीजेपी कर सकती है ऐसा…

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अपने एक दिवसीय बिहार दौरे के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर जमकर हमला किया। इस दौरान उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि अब नीतीश कुमार के लिए भारतीय जनता पार्टी (BJP) के दरवाजे सदा के लिए बंद हो गए हैं।

बीजेपी के ”चाणक्य” के इस बयान से पहले भगवा पार्टी ने इसकी तैयारी शुरू कर दी थी। बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए से अपनी राह जुदा करने वाले चिराग पासवान भी हाल में संपन्न हुए उपचुनावों में बीजेपी से अपनी नजदीकी को उजागर कर दिया। इन जगहों पर उन्होंने बीजेपी कैंडिडेट के पक्ष में प्रचार भी किया।

चिराग पासवान के बाद कुशवाहा नेता उपेंद्र कुशवाह ने बीजेपी के पक्ष में बिहार में बैटिंग करनी शुरू कर दी है। जेडीयू से अपना संबंध तोड़ने के बाद वह भी भगवा पार्टी की भाषा बोलने लगे हैं। इतना ही नहीं, नई पार्टी बनाने वाले कुशवाहा से बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने मुलाकात भी की है। ऐसा माना जा रहा है कि पहले लोकसभा चुनाव और फिर 2025 के विधानसभा चुनाव में वह बीजेपी के साथ मिलकर चुनावी अखाड़े में कूद सकते हैं। वहीं, मुकेश सहनी का साथ मिलने से बिहार में बड़े पैमाने पर मल्लाह जाति को पाले में करने की भी तैयारी चल रही है।

चिराग पासवान के चाचा पशुपति पारस के बागी तेवर के कारण भले ही लोजपा को दो फाड़ हो गया, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि पिता की विरासत चिराग पासवान के पास ही जाएगी। भारतीय राजनीति में अभी तक ऐसा ही होता आ रहा है।

अखिलेश और शिवपाल यादव की लड़ाई इसका ताजा उदाहरण है। दूसरी तरफ, चिराग पासवान ने भले ही एनडीए से अपना गठबंधन तोड़ लिया, लेकिन बीजेपी के साथ उनका याराना कभी कम नहीं हुआ। उन्होंने खुद को नरेंद्र मोदी का हनुमान तक बता दिया था। उनके इस बयान के बाद चिराग पासवान के पास बीजेपी के साथ जाने के अलावा कुछ और चारा बचा नहीं है। हालांकि, 4-4.50 प्रतिशत दुसाध वोट के कारण उनकी प्रासंगिता बिहार की राजनीति में बनी रहेगी।

चूंकि बिहार की राजनीति में जाति सदैव हावी रही है। यहां ध्रुवीकरण की कोशिश कभी सफल नहीं रही है। ऐसे में बीजेपी की नई रणनीति को समझने के लिए हमें इन जातियों की सियासी ताकत के बारे में जानना जरूरी है। सबसे पहले बात चिराग पासवान की, जो कि अपने पिता रामविलास पासवान की विरासत को संभालने की कोशिश करते दिख रहे हैं। रामविलास को बिहार की दुसाध जाति का कद्दावर नेता माना जाता है। इनकी संख्या 4 से 4.50 प्रतिशत के करीब है। यह जाति लड़ाकू और दबंग किस्म की रही है। इनका अभी तक पलायन नहीं हुआ है।

 

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