मोरबी की दर्दनाक कहानियां, पिता अपने लापता बच्चों को तलाश रहा…

मोरबी में हालात भयावह हैं। मच्छु नदी पर बना केवल पुल ही नहीं टूटा, इस घटना के साथ ही कई परिवार भी तबाह हो गए हैं। आंकड़े बताते हैं कि अब तक 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं, 177 लोगों को बचाया गया है। साथ ही सैकड़ों की तलाश जारी है। इन्हीं लोगों में कहीं पिता अपनी लापता बच्चों को तलाश रहा है। वहीं, कोई मां अपनी बच्ची को खोने का गम मना रही है।

हालांकि, मोवार परिवार की कहानी यहां अकेली नहीं है। शासकीय अस्पताल में इस तरह के संघर्ष हर जगह नजर आ रहे हैं। रविवार देर रात तक यहां शवों का आना जारी रहा। कोई अपने घायल रिश्तेदारों को खोजता रहा, तो किसी को उम्मीद थी कि उनके लापता परिजन यहां मिलेंगे।

इन्हीं में एक अरिश्फा शाहमदार भी हैं। वह अपने पांच साल के बेटे और पत्नी के शव के पास घाव सहला रहे हैं। उनका दुख यहां खत्म नहीं होता, क्योंकि 6 साल की एक बेटी गायब भी है। उनके दोस्त बताते हैं, ‘अरिश्फा की पत्नी और बेटे की मौत हो गई है और बेटी गायब है। जामनगर से मोरबी आई उनकी बहन की भी मौत हो गई है और उनके दो बच्चे गायब हैं। आरिफ के भाई का भी एक बच्चा गायब है।’

मोरबी की रहने वाली सुमित्रा ठक्कर एक एनजीओ की सदस्य भी हैं। उन्होंने बताया कि सहकर्मियों को घायलों के लिए डॉक्टर तलाशने में मुश्किल हो रही है। सुमित्रा ने कहा, ‘रविवार है और मुझे जानकारी दी गई थी की त्योहार के सीजन के चलते निजी अस्पतालों में भी कम ही डॉक्टर हैं। आज की घटना ने 1979 की मच्छु डेम त्रासदी की याद दिला दी।’

हालात को संभालने के लिए मोरबी शासकीय अस्पताल में निजी डॉक्टर और पैरामिडिक्स की मदद लेनी पड़ी। राज्य के अन्य हिस्सों से 30 लोगों की टीम भेजी गई है।

अहमदाबाद से करीब 200 किमी की दूरी पर बना यह सस्पेंशन ब्रिज शाम 6.42 पर टूट गया। बताया जा रहा है कि हादसे के वक्त पुल पर करीब 500 लोग थे और छठ पूजा से जुड़ी रस्में निभा रहे थे। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मच्छु नदी में अभी भी 100 लोग फंसे हुए हैं। करीब 70 लोगों को बचाया गया है और अस्पताल में दाखिल किया गया है।

राहत कार्य के लिए NDRF की पांच टीमें मौके पर भेजी गई थीं। इसके अलावा सेना, नौसेना और वायुसेना ने भी मोर्चा संभाला है। साथ ही घटनास्थल पर एक मेडिकल टीम भी तैनात है। करीब 150 साल पुराना यह केबल ब्रिज पर्यटन के लिहाज से लोकप्रिय जगह थी। रिनोवेशन के लिए यह 7 महीनों से बंद था। 26 अक्टूबर को इसे जनता के लिए दोबारा खोला गया।

हादसे में मोना मोवार की 11 साल की बेटी नहीं रहीं। इतना ही नहीं उनका छोटा बेटा और पति भी मोरबी शासकीय अस्पताल में मौत से जंग लड़ रहे हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में उनकी रिश्तेदार बताती हैं, ‘मैं अपनी बहन के साथ हूं और वह रोना बंद ही नहीं कर रही है। मेरा भतीजा और जीजाजी जिंदगी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हमारे रिश्तेदार अस्पताल में हैं और मैं मेरी बहन को घर ले जाने की कोशिश कर रही हूं।’

Related Articles

Back to top button