इस्तीफे के दांव से और मजबूत हुए शरद पवार, जानने के लिए पढ़े पूरी खबर

नसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने इस्तीफे के दांव से न केवल अपनी पार्टी में खुद को मजबूत किया है, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी अपनी अहमियत बरकरार रखी है। पवार के भतीजे अजीत पवार के लिए यह एक झटका है जो पार्टी में अपनी मजबूत पकड़ से भावी रणनीति बनाने में जुटे थे।

साथ ही भाजपा के लिए भी यह संकेत हैं कि एनसीपी अभी उससे दूर है और उसे आगे भी महाराष्ट्र व राष्ट्र की राजनीति में पवार फैक्टर को सामने रखकर ही आगे बढ़ना होगा।

दो मई से लेकर पांच मई तक महाराष्ट्र की राजनीति शरद पवार के इर्दगिर्द धूमती रही। एनसीपी से लेकर हर दल में एक ही सवाल रहा कि पवार का अगला कदम क्या होगा? सकते में पवार के भतीजे एनसीपी भी रहे जो मान रहे थे कि शरद पवार शायद ही अपना फैसला बदले। इन तीन दिनों में पवार ने सभी प्रमुख नेताओं से और प्रमुख कार्यकर्ताओं से मुलाकातें कर अजीत पवार की ताकत व उनके साथ जुटे समर्थन का आंकलन किया। जब यह साफ हो गया कि पार्टी के विधायक से लेकर संगठन तक उनके साथ हैं तो उन्होंने अपने इस्तीफा वापस लेने का फैसला किया।

इस घटनाक्रम में पवार को जो समर्थन मिला, उससे साफ है कि 2024 के लिए विपक्ष की राष्ट्रीय राजनीति में उनकी अहम भूमिका होगी। फिलहाल उनका भाजपा विरोधी रुख व विपक्षी एकता की मुहिम बरकरार है। हालांकि आगे की स्थितियां कांग्रेस के रुख पर निर्भर करेंगी कि वह विपक्षी एकता के लिए किस तरह की सोच व रणनीति रखती है। अलबत्ता शरद पवार, नीतीश कुमार व ममता बनर्जी जैसे क्षत्रप लगातार विपक्षी एकजुटता के लिए कवायद कर रहें है, लेकिन इसकी धुरी कौन होगा, यह साफ होना अभी बाकी है।

इस बीच पवार से इस्तीफा वापस लेने के लिए अन्य दलों के नेताओं ने भी गुहार लगाई। इनमें उनके विरोधी नेता व विपक्षी खेमे के दल भी शामिल रहे। इससे जाहिर है कि पवार की राज्य व राष्ट्रीय राजनीति में अहमियत बरकरार है, क्योंकि उनका इस्तीफा केवल एनसीपी का अंदरूनी मामला भर तक सीमित नहीं रहा। सूत्रों का मानना है कि अजीत और भाजपा के बीच पक रही खिचड़ी में शरद पवार भी अपनी पार्टी की भीतर की स्थिति को लेकर सशंकित थे। उनको आशंका थी कि कहीं विधायक सत्ता के लिए अजीत पवार के साथ न चले जाएं।

 

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